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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहारा समूह से जुड़ी चार सहकारी समितियों की याचिका खारिज की

वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज रिपोर्ट

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सहारा समूह की चार सहकारी समितियों — हमारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, स्टार्स मल्टीपर्पस कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड और सहारायन यूनिवर्सल मल्टीपर्पस सोसाइटी लिमिटेड — की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की गई तलाशी और जब्ती की कार्रवाई को चुनौती दी थी।

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने कहा कि उपलब्ध तथ्यों से प्रथम दृष्टया धोखाधड़ी का मामला बनता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत ED की कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि संबंधित FIR में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जा चुकी है।

🔹 पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने 2 जुलाई 2024 को ईडी के कोलकाता क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा जारी प्राधिकरण के तहत 3 से 5 जुलाई 2024 के बीच लखनऊ स्थित उनके दफ्तरों में की गई तलाशी और जब्ती कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी। यह कार्रवाई 31 मार्च 2023 की प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) पर आधारित थी, जो भुवनेश्वर में हमारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज FIR से संबंधित थी।

इस FIR में आरोप था कि अधिकारियों ने निवेशकों को ऊँचे ब्याज दरों का लालच देकर झूठे वादों के आधार पर पैसे जमा कराए। भले ही भुवनेश्वर पुलिस ने बाद में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी, लेकिन ईडी ने जांच जारी रखी, क्योंकि सहारा समूह की कंपनियों के खिलाफ देशभर में 500 से अधिक FIR दर्ज हैं, जिनमें से 300 से ज़्यादा IPC की धाराओं 417, 420 और 467 के तहत हैं।

🔹 ED की कार्यवाही और आरोप

ED ने PMLA की धारा 17(1) और 17(1A) के तहत लखनऊ मुख्यालय सहित कई सहारा कार्यालयों में तलाशी ली और बड़ी मात्रा में रिकॉर्ड जब्त किए। ईडी का आरोप है कि सहारा समूह की सभी जमा स्वीकार करने वाली संस्थाओं ने समान एजेंट, समान शाखाएँ और समान बैंक खाते इस्तेमाल किए — जिससे वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता नहीं रही।

ईडी ने यह भी कहा कि धन का अंतरण वास्तव में कभी हुआ ही नहीं, बल्कि केवल विभिन्न खातों के बीच कागज़ी समायोजन किया गया। आरोप है कि परिपक्व योजना की राशि को नई योजना में “पुनः जमा” दिखाया गया, जबकि निवेशकों को उनकी रकम वापसी का कोई विकल्प नहीं दिया गया।

🔹 न्यायालय का निर्णय

पीठ ने माना कि इन तथ्यों से प्रथम दृष्टया यह संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ताओं ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का अपराध किया है।
जस्टिस विद्यार्थी ने कहा —

> “उपर्युक्त तथ्य प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ताओं द्वारा धोखाधड़ी का अपराध किए जाने का संकेत देते हैं, जिससे उन पर इस अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाना उचित प्रतीत होता है। आरोपों की सत्यता की जांच इस न्यायालय द्वारा अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए नहीं की जा सकती।”

इस प्रकार, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आरोपों की जांच और सत्यता का निर्धारण केवल विचारण न्यायालय (ट्रायल कोर्ट) द्वारा किया जाएगा, जहाँ सभी पक्षों को अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूरा अवसर मिलेगा।

📍 रिपोर्ट: वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज, लखनऊ

Jitendra Maurya

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